1950th BLOG POST
आदिकाल
से ही सनातन धर्म में आषाढ़ माह की
पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है। शिवपुराण के अनुसार
अठ्ठाईसवें द्वापर में इसी दिन भगवान विष्णु के अंशावतार वेदव्यास जी का जन्म हुआ।
चारों वेदों का बृहद वर्णन करने और वेदों का सार 'ब्रह्मसूत्र' की
रचना करने के फलस्वरूप ही ये 'महर्षि व्यास'
नाम से विख्यात हुए। इन्होंने महाभारत
सहित अट्ठारह पुराणों एवं अन्य ग्रन्थों की भी रचना की, जिनमें
श्रीमदभागवतमहापुराण जैसा अतुलनीय ग्रंथ भी है। इस दिन जगतगुरु वेदव्यास सहित अन्य
गुरुओं की भी पूजा की जाती है। शैक्षिक ज्ञान, आध्यात्म एवं साधना का विस्तार करने और
इसे प्रत्येक प्राणी तक पहुंचाने के उद्देश्य से सृष्टि के आरम्भ से ही गुरु-शिष्य
परंपरा का जन्म हुआ।
शास्त्रों में 'गु' का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान, और 'रु' का अर्थ उसका निरोधक, अर्थात 'प्रकाश' बतलाया गया है। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन से निवारण कर देता है, अर्थात अंधकार से हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला 'गुरु' ही है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी, क्योंकि यह सम्बन्ध आध्यात्मिक उन्नति एवं परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही होता है।
Source:
https://www.amarujala.com/
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