924th (Member's) BLOG POST -->>
Sanjeet Kumar Pathak is one of those guys whom I have met on Facebook. Though our conversation started with abusing each other :-) but now, we are good friends. This guy who initially gave me "dhamkis" now help me in my college projects and other departments where I have no skills. I have always been his admirer when it comes to Computer knowledge and command over Hindi language. All of you would be remembering my 892nd BLOG POST- "LOVE! Something Above It- That's MY FEELING!!!" where I wrote something that's too philosophical for me. It was something I wrote according to the situations I was in. And I always wanted this one of my favorite posts to be translated in Hindi. And I found no one better than Sanjeet to do this for me. I hope you will love reading the Hindi version of my 892nd BLOG POST. This is one of the rare things that's happening on any BLOG.
FOREWORD BY SANJEET K. PATHAK:-
कहीं सुना था, क्रांति आती नहीं, लायी जाती है. मैं जब भी अभिलाष को
देखता हूँ, इसकी सत्यता का आभास होता है. कंप्यूटर के इस छात्र ने कैसे
इतने कम समय में एक वैचारिक क्रांति ला दी है. आज, जब मैं खुद ARB का एक
छोटा सा हिस्सा बनने जा रहा हूँ, खुद को सातवें आसमान पर महसूस कर रहा
हूँ. दिल से धन्यवाद अभिलाष भाई! ये मौका देने लिए :-)
PREM- Kuch Usse Upar- Wo Meri Bhavna!!!
To read the Original Post in English, CLICK HERE!!!
प्रेम एक शाश्वत भावना है. मुझे पता है. जीवन में
हम सबको कम से कम एक बार प्यार जरूर होता है. बुरका पहनी लडकियाँ जिन्हें जिंदगी
भर बेडरूम में रखा जाता है उन्हें भी पता है की प्यार क्या है और वे भगवान् से
प्रार्थना करतीं हैं की जब वे शादी को तैयार हो तो उनका राजकुमार आये. यहाँ तक की
एक बच्चा भी जन्म से पहले ही अपने माँ से प्यार करने लगता है. खैर, मैं उस प्यार और
भक्ति की बात नहीं कर रहा जो माता-पिता और बच्चे आपस बांटते हैं. मैं उसकी बात कर
रहा हूँ जिसके लिए हम सब याचना करते हैं. क्या प्यार का इंतजार कभी ख़त्म होता है ?
हाँ, यह ख़त्म होता है. हम जिस व्यक्ति को
चाहते हैं उसके साथ नहीं बल्कि उस व्यक्ति के साथ जो हमारे लिए उपयुक्त है. वे
दोनों एक ही व्यक्ति हो सकते हैं परन्तु सामान्यत: नहीं होते. मैंने हमेशा प्रेम
के खिलाफ बोला है क्यूँ की यह दर्द देता है, या तो नियमित रूप से, कभी-कभी या अंत
में एक ही बार में सब. 99%
प्रेम कहानियों का दु:खद अंत होता है. मैं अपनी
जिंदगी में ऐसी कोई और कहानियां नहीं चाहता जिनका अंत आंसू और पछतावा हो इसलिए मैं
हमेशा इससे दूर रहना चाहता हूँ जिसे हम अक्सर प्यार कहते हैं.
लेकिन
तब क्या जब आप किसी के साथ सम्बन्ध में आते हैं जो प्यार से ऊपर है. मेरे पास इसके
लिए कोई शब्द नहीं. वह व्यक्ति जिसके लिए मेरे ऐसे भाव थे उसने पूछा “तुमने हमेशा
कहा की तुम मुझसे प्यार नहीं करते फिर हमेशा यह क्यूँ कहते रहते हो की तुम मुझसे
प्यार करते हो. क्यूँ की कोई लेखक, कोई निर्माता, कोई व्याकरणिक, कोई साहित्यिक
गुरु कभी भी भावना की इस तीव्रता में नहीं गया जिसे वह कुछ नाम दे सके. यहाँ
दोस्ती है. यहाँ प्यार है. यहाँ प्रशंसा है. यहाँ आदर है. यहाँ भक्ति है. लेकिन
इसे कोई नाम नहीं दिया गया है, मैं जिसमे पड़ा हूँ. मैं, अगर कभी काफी प्रतिभा और
ज्ञान अर्जित कर लूँगा तो मैं इस भावना को एक नाम दूंगा. एक शब्द जो यह बता सके की
कृष्ण के लिए सुदामा का दृष्टिकोण, कृष्ण के लिए मीरा का दृष्टिकोण और अल्लाह के
लिए मोह्हम्मद का दृष्टिकोण क्या था. मैं आशा करता हूँ मेरे भावना को एक नाम
मिलेगा.
लोग
इसे प्रेम प्रसंग कहते हैं तो कुछ लोग इसे Relationship कहते
है, कुछ और लोग इसे “Many-Night-Stand” कहते हैं. पर क्या मैं यह स्पष्ट करने में सक्षम
हो पाऊंगा की मेरे दिल ने इस रिश्ते को क्या नाम दिया है ? नहीं. क्या मुझे कभी खुद को बचाने जाना होगा ? नहीं. यह
भावना हमेशा के दिल में रहेगा. केवल अंतिम सांस के साथ, जब मेरी आत्मा शरीर छोड़
देगी यह भावना भी चला जाएगा. लेकिन जब तक मैं जीवित हूँ और इस दुनिया का हिस्सा
हूँ यह मेरे साथ रहेगा. मैं यह कभी नहीं कहता की प्यार सिर्फ एक व्यक्ति से होता है.
यह एक समय में दो से हो सकता है या अलग-अलग समय में कईयों से हो सकता है लेकिन जब
भी होता है जिंदगी को मतलब मिल जाता है. कुछ इसके लिए मरते हैं, कुछ रोते हैं, और
कुछ मेरी तरह, कोशिश करते हैं, कुछ सफल होते है, कुछ असफल होते हैं, कुछ बदनाम हो
जाते हैं तो कुछ शाहजहाँ बन जाते हैं... एक मेरे जैसे व्यक्ति को कभी सम्मान नहीं
मिलता लेकिन पूरा जीवन एक खुबसूरत शरीर और भ्रमित मन वाले जीवंत व्यक्ति को प्यार
करता रहता है.
नहीं.
दुनिया के सामने इसे कहना आसान नहीं होता. मेरे देश में, मेरे समाज में, मेरे अयोध्या में
यह इतना आसान नहीं है. यहाँ प्यार वर्जित है और ऐसा ही रहेगा. अगर उस व्यक्ति पर
मेरा स्वामित्व होता और उस व्यक्ति को भी मेरे लिए वैसा ही महसूस होता तभी सब कुछ
आसान हो गया होता. सचमुच ? नहीं. फिर ऐसा खंड आता है जहाँ साथी की योग्यता,
सुन्दरता, पैसे, अतीत इत्यादि देखे जाते हैं. आप पर प्रश्न फेंके जाते हैं और आप
जबाब देते-देते थक जाते हैं. मैं अपने उत्पन्नकर्ताओ का दिल कभी नहीं तोडूंगा ना
ही कभी तोड़ पाऊंगा. लेकिन मैं देर तक लड़ सकता हूँ. जब तक मुझमे आतंरिक शक्ति,
विश्वास और आशा है तब तक लड़ सकता हूँ. जो मेरा है उसके जीत के लिए मैं समाज से दूर
नहीं भागूँगा लेकिन मैं आत्मा-मिलन समारोह में समाज को आमंत्रित करूँगा. मैं उनमे
से नहीं हूँ जो दुनिया से अपना परी को छिपाएगा. मेरे लिए, यह सुन्दर है. मेरे लिए,
यह पवित्र है. मेरे लिए, यह मेरा है. J
संभवतः
मेरे लिए इस जिंदगी का मतलब प्यार और उस व्यक्ति की जीत नहीं है. संभवतः मेरा यह
जीवन आँसू बहाने और मानसिक प्रक्रियाओं के रूप में परिणामों के प्रतीक्षा के लिए
हो सकता है. हो सकता है इस जन्म के दौरान मैं असफल रह जाऊं. लेकिन मेरे ह्रदय की
शक्ति मुझे हमेशा उसके लिए समर्पित होने को कहती है जो मुझे ऊर्जा, जीवन, मुस्कान, पदार्थ, अर्थ, सुधार, प्रतिबद्धता,
साथ आदि देता है, यह हमेशा मजबूत और एक
ही रहेगा. मैंने हमेशा कईयों को प्यार करने की कोशिश की है. मैं कईयों के करीब आने
में सक्षम भी हूँ. लेकिन क्या मैंने कभी किसी के लिए यह महसूस किया? नहीं. यह
दिव्य अहसास वह है जो चिंतन के साथ मुझे थोडा गौतम बुद्ध बना देगा. मैं इस बारे
में क्या सोचता हूँ अगर लोगो को बताना शुरू करूँ तो यह मुझे एक क्रन्तिकारी बना
देगा. लेकिन क्या मैं ऐसा करूँगा? नहीं. पहले ही दिल एक के लिए हर मिनट धड़कता है,
पहले ही हर सांस मुझसे कहती है की सब-कुछ हासिल किया जा चूका है, जिंदगी प्रवाह
में है, सिर्फ स्टूल का एक पैर गायब है, जाओ और हासिल करो वह जो तुम्हारा है लेकिन
तुम्हारे साथ नहीं, और उन सब के साथ जीवन जीयो जिसके लिए तुमने सपना देखा था की
तुम्हारा होगा.
मैं
लम्बी दूरी के सम्बन्ध वालो से हमेशा पूछता हूँ की वे कैसे जी रहे हैं. उन्होंने
मुझे बहुत कारण दिया लेकिन मैं कभी समझ नहीं पाया. आज जब मुझे ऐसा व्यक्ति मिला है
जो मेरे करीब है लेकिन अब भी बहुत दूर है, मैं महसूस करता हूँ की क्यूँ शारीरिक
रूप से दूर और मानसिक रूप से एक साथ एक दूसरी की बाहों में होकर भी एक साथ नहीं
होने से ज्यादा आध्यात्मिक प्रेम है. जब मैं आँखों में देखूं, इसे मुझे
प्रतिबिंबित करना चाहिए. जब मैं हाथ पकडूँ, इसे और जोर से मेरा हाथ पकड़ना चाहिए.
और जब चुम्बन लूँ, तो प्यार के इस कार्य में मुझे मालिक की नहीं, गुलाम की अनुभूति
होनी चाहिए. मैं ध्यान चाहता हूँ. मैं प्राथमिकता चाहता हूँ. मैं अपने निकट भगवन
की उपस्थिति चाहता हूँ. मेरे जीवन में एक परी मिली है और परियां भगवान द्वारा भेजे
जाते हैं, मेरे लिए वह भगवान से कम नहीं. मुझे अपवाहों की कोई परवाह नहीं, मुझे
अस्वीकृति की कोई परवाह नहीं. मुझे समाज और बुजुर्गों के गलियों की कोई परवाह
नहीं. और सबसे बड़ी इच्छा हमेशा अधूरी रहती है. यह कार्य है अपूर्णता को पूरा कर उस
जिंदगी को पाना जो मेरा है.
मैं
उस व्यक्ति को प्यार नहीं करता. मेरी भावना अब भी अपरिभाषित है. लेकिन मैं इसे
समझता हूँ. सायद यह लम्बे समय तक मुझे एक स्थायी साथी से दूर रख सकता है. मैं
अकेला रहने को तैयार हूँ. इस बात से लोग मुझे कह सकते हैं की मैं प्यार करने के
लायक नहीं हूँ. मैं हारे हुए के रूप में जाने जाने के लिए तैयार हूँ. लेकिन मुझे
जो भी मिलेगा, मैं उसे पाऊंगा जिसके लिए मेरे दिल में भावनाएं हैं या उसी के
बिलकुल सामान कोई. बाद वाला असंभव दिखाई देता है जबकि पहले वाला संभव है. यह
मुश्किल है. आप दूसरों के भावना और मानसिकता को नियंत्रित नहीं कर सकते लेकिन आप
अपने ध्यान का एक हिस्सा बना सकते हैं. मुझे विश्वास है की मेरी एकाग्रता पूरे
वातावरण को मेरी ओर आकृष्ट करेगा और व्यक्ति स्वतः ही स्थायी शरीर के चारों ओर
मुझे पायेगा. मुझे नहीं पता की ये भावना कभी उसके द्वारा और लोगो द्वारा समझा
जाएगा या नहीं, लेकिन यह हमेशा मेरे साथ रहेगा....जब तक मैं हूँ....मरते दम
तक....और जब तक मैं पुन: जन्म लेकर नहीं आता. :-)
Thanks.
संजीत कुमार पाठक with ABHILASH RUHELA - VEERU!!!
0 CoMMenTs !!! - U CaN aLSo CoMMenT !!!:
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